खीरे में होने वाले 10 सामान्य रोग – 10 Common Diseases Of Cucumber Plants: Identification And Treatment In Hindi

Cucumber Plants Disease In Hindi: खीरा गर्मी के मौसम में सबसे ज्यादा उगाया जाता है, जो न केवल स्वाद में हल्का और ताजा होता है, बल्कि शरीर को ठंडक भी देता है। लेकिन बागवानी करते समय सबसे बड़ी चिंता तब होती है जब पौधे में अचानक पत्तियां पीली पड़ने लगें, फल खराब हो जाएं या पौधा मुरझाने लगे। दरअसल, खीरे के पौधे कई तरह के रोगों से प्रभावित हो सकते हैं – जैसे फफूंदी, वायरस, बैक्टीरिया या पोषक तत्वों की कमी।

अगर समय रहते खीरा के रोगों की पहचान कर सही इलाज किया जाए, तो न केवल पौधों को बचाया जा सकता है, बल्कि उसकी गुणवत्ता और उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि, खीरे में कौन-कौन से रोग लगते हैं और उनके लक्षण व खीरा के रोग दूर करने के आसान उपाय, ताकि आपका गार्डन हमेशा हरा-भरा और फलदार बना रहे।

खीरे में होने वाले 10 प्रमुख रोग – Top 10 Disease Of Cucumber Plants In Hindi

गमले या गार्डन की मिट्टी में लगा खीरे का पौधा कई प्रकार के रोगों से ग्रसित हो सकता है। यहाँ हम जानेंगे खीरे में होने वाले रोग कौन से हैं और दूर करने के उपाय क्या हैं। तो चलिए शुरू करते हैं-

1. पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)

पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)

रोग का कारण व लक्षण:

यह फफूंद जनित रोग है जो गर्म, आद्र वातावरण में पनपता है। इस रोग में बीजाणु खीरे के पौधे की पत्तियों से पोषक तत्व सोख लेते हैं, जिससे पौधे पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे बन जाते हैं।

उपाय:

खीरा के पौधों को ऐसे स्थान पर लगाएं, जहाँ पूरी धूप मिल सके और हवा का अच्छा संचार हो सके। पौधे पर बेकिंग सोड़ा के घोल या नीम तेल जैसे फफूंदनाशी का इस्तेमाल करें। रोग प्रतिरोधी खीरे की किस्में लगाकर भी संक्रमण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा पौधे के आस-पास सफाई रखें।

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2. डाउनी मिल्ड्यू (Downy Mildew)

रोग का कारण व लक्षण:

यह रोग नम वातावरण में स्यूडोपेरोनोस्पोरा क्यूबेन्सिस नामक रोगाणु के कारण फैलता है और पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे और निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे पैदा करता है। यह रोग तेजी से फैलता है, जिससे पत्तियां गिरने लगती हैं और उपज भी कम हो जाती है।

उपाय:

खीरा के पौधों को धूल और रोगजनकों से मुक्त रखें। खीरे को ऐसे स्थान पर लगाएं जहाँ पूरी धूप मिल सके और हवा अच्छा संचार हो सके। पौधे पर नीम तेल जैसे फफूंदनाशी का इस्तेमाल करें। रोग प्रतिरोधी खीरे की किस्में लगाकर भी संक्रमण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा पौधे के आस-पास साफ सफाई रखें।

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3. एन्थ्रेक्नोज रोग (Anthracnose Disease)

रोग का कारण व लक्षण:

खीरा में एन्थ्रेक्नोज एक कवक रोग है, जो कोलेटोट्राइकम ऑर्बिकुलेरे (Colletotrichum orbiculare) नामक कवक के कारण होता है। यह कवक गर्म, नम वातावरण में पनपता है और पौधे की पत्तियों, तनों और फलों को संक्रमित करता है। यह संक्रमित बीजों, पौधों के अवशेषों और मिट्टी के माध्यम से खीरे के पौधों में फैल सकता है।

उपाय:

रोगमुक्त बीजों का इस्तेमाल करें। हवा के अच्छे संचार और नमी को कम करने के लिए पौधों को उचित दूरी पर लगाएं। पत्तियों को सूखा रखने के लिए पौधे के आधार पर पानी दें। आप इस रोग से बचाव के लिए कवकनाशी कार्बेन्डाजिम या मैनकोजेब का छिड़काव पौधे पर कर सकते हैं।

4. जीवाणु झुलसा (Bacterial Wilt)

जीवाणु झुलसा (Bacterial Wilt)

रोग का कारण व लक्षण:

खीरा के पौधों में यह रोग एर्विनिया ट्रेकीफिला (Erwinia tracheiphila) बैक्टीरिया के कारण होता है, जो मुख्य रूप से ककड़ी भृंगो के द्वारा फैलता है। ये भृंग ककड़ी के पौधों की पत्तियों को खाते हैं और घाव बनाते हैं। इसमें पौधा अचानक मुरझा जाता है और तना काटने पर चिपचिपा रस निकलता है।

उपाय:

इस रोग को नियंत्रित करने के लिए कीट नियंत्रण (जैसे ककड़ी भृंग) करें, क्योंकि यह रोग कीटों के द्वारा फैलता है। इन कीटों को आप हाथ से भी हटा सकते हैं। इसके अलावा आप नीम तेल स्प्रे या जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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5. ककड़ी कवक (Cucumber Fungus)

रोग का कारण व लक्षण:

खीरे के पौधों में फंगस लगना एक आम समस्या है। खीरे के फफूंद जनित रोगों में चूर्णी और कोमल फफूंदी दो आम रोग हैं। फफूंदी रोग पौधे की पत्तियों, तने और फलों में सफेद धब्बों के रूप में दिखाई देता है।इस रोग के कारण पत्ते पीले पड़ जाते हैं और पौधे मुरझा जाते हैं। यह कवक नम वातावरण में तेजी से फैलते हैं, जिससे पौधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उपज भी कम हो जाती है।

उपाय:

खीरे के पौधों को फफूंद से बचाने के लिए, पौधों को उचित दूर पर लगाएं और खीरा के पौधों में अच्छे वायु प्रवाह को सुनिश्चित करें। इसके अलावा पौधों की पत्तियों पर पानी देने से बचें, क्योंकि इससे नम वातावरण बन सकता है जो फफूंद को बढ़ाता है। आप रोगग्रस्त पत्तियों को हटा सकते हैं और पौधे पर फफूंदनाशी का छिड़काव कर सकते हैं।

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6. फलों का फटना व पत्तियों का पीला होना

रोग का कारण व लक्षण:

पोषक तत्वों की कमी जैसे नाइट्रोजन, आयरन, बोरोन, कैल्शियम या पोटेशियम की कमी के कारण फल विकृत होना, फट जाना और खीरे की पत्तियां पीली होने लगती हैं।

उपाय:

खीरे के पौधे लगे गमले या गार्डन की मिट्टी में संतुलित उर्वरक का इस्तेमाल करें। आप पुरानी गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, NPK खाद और प्लांट ग्रोथ प्रमोटर लिक्विड खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं। आप पौधों के लिए सब्जियों के छिलके, अंडे के छिलके आदि से घर पर ही तरल खाद तैयार कर सकते हैं।

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7. रूट रॉट रोग (Root Rot)

रोग का कारण व लक्षण:

जड़ सड़न रोग मिट्टी में जलभराव और फ्यूजेरियम फफूंद (Fusarium Fungus) के कारण होता है। इस रोग में खीरे की जड़ें सड़ने लगती हैं, जिससे पौधा सूखने लगता है और अंततः मर जाता है।

उपाय:

जल निकासी सुधारें, अतिरिक्त जल निकासी वाली मिट्टी का उपयोग करें। इसके अलावा रोग ग्रसित होने पर आप पौधे पर फफूंदनाशी का छिड़काव कर सकते हैं।

8. मोजेक वायरस रोग (Mosaic Virus)

रोग का कारण व लक्षण:

यह खीरे के पौधे का एक वायरल रोग है, जो एफिड्स के माध्यम से फैलता है। इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियों पर छोटे-छोटे चित्तीदार धब्बे बन जाते हैं, पत्तियां छोटी तथा अनियमित आकार की हो जाती हैं तथा पौधा पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता या बौना रहता है।

उपाय:

यह रोग पौधे के आस-पास उगने वाली खरपतवार के माध्यम से फैलते हैं, अतः उचित खरपतवारनाशी का स्प्रे करें। पौधे की नियमित जांच करें, तथा रोग के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर नीम ऑयल का स्प्रे करें। इसके अलावा रोगग्रस्त पौधों को गार्डन से हटाएं और गार्डन में कीट नियंत्रण करें।

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9. लीफ स्पॉट रोग (Leaf Spot Disease)

रोग का कारण व लक्षण:

पत्ती धब्बा रोग (Leaf Spot Disease) गार्डन के पौधों का एक सामान्य रोग है, जो फंगस, बैक्टीरिया, वायरस और अन्य कई कारणों से होता है। इस रोग के प्रभाव से पौधे की पत्तियों पर छोटे-छोटे स्पॉट्स दिखाई देने लगते हैं। यह धब्बे आकार और रंग में अलग-अलग हो सकते हैं। लीफ स्पॉट रोग के प्रभाव से पौधा कमजोर हो जाता है और उसकी ग्रोथ रुक जाती है।

उपाय:

पौधों की संक्रमित पत्तियों और शाखाओं की प्रूनिंग करें तथा प्रत्येक कट के बाद प्रूनर को कीटाणुरहित करें। गंभीर संक्रमण की स्थिति में पौधे की पत्तियों पर प्राकृतिक जैविक फंगीसाइड नीम तेल तथा कॉपरयुक्त कवकनाशी का स्प्रे करें। यदि पौधा बुरी तरह संक्रमित हो गया है, तो गमले को हटाकर गार्डन के अन्य पौधों से दूर रखें।

10. डैम्पिंग ऑफ (Damping Off)

डैम्पिंग ऑफ (Damping Off)

रोग का कारण व लक्षण:

सीडलिंग में डम्पिंग ऑफ रोग मुख्यतः मिट्टी के अधिक समय तक गीला रहने और अधिक ठण्ड और अधिक नम वतावरण के कारण फैलता है। मिट्टी में लम्बे समय तक नमी बनी रहने से उसमें कई कवक जैसे पायथियम (Pythium) और राइजोक्टोनिया सोलानी (Rhizoctonia solani) पैदा हो जाते हैं। ये कवक सीडलिंग पर जमा हो जाते हैं, जिसके कारण सीडलिंग का तना और जड़ें गलने लगती हैं। कई बार फंगस बुआई के तुरंत बाद बीजों पर जमा हो जाती है, जिससे बीज सड़ने लगता है और वो बीज अंकुरित ही नहीं हो पाता।

उपाय:

इस रोग से बचने के लिए अच्छे से बीज उपचार करें और गार्डन में अच्छी जल निकासी रखें।

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निष्कर्ष:

खीरे की बागवानी करते समय रोगों की सही पहचान और समय पर इलाज बहुत जरूरी होता है। पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू, जीवाणु झुलसा या मोज़ेक वायरस जैसे रोग खीरे की बढ़वार और फलन को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन यदि हम पौधों की नियमित देखभाल करें, उचित जल निकासी रखें, संतुलित खाद और फफूंदनाशी का सही उपयोग करें, तो इन रोगों से बचाव संभव है। इस लेख से रिलेटेड आपके सुझाव हों, तो कमेंट में जरूर बताएं।

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