मानसून में पौधों के सड़ने का कारण और उनको बचाने के उपाय

मानसून का मौसम गर्मी के दिनों से राहत और शांति लेकर आता है और एक बार फिर से पर्यावरण को हरियाली से भर देता है। मानसून के आते ही पौधे तेजी से बढ़ने लगते हैं और पहले से ज़्यादा हरे भरे दिखते हैं और हर जगह सुंदरता दिखाई देती है। आसमान कभी-कभी धुंधला दिखता है, कभी बादलों से घिरा होता है और सब कुछ किसी न किसी तरह नया लगता है।

ये वो दिन भी हैं जब हमें अपने बरसात के मौसम के पौधों के बारे में ज़्यादा सावधान रहना चाहिए। अत्यधिक बारिश, नमी में वृद्धि और कम धूप हमारे गार्डन में लगे मानसून के पौधों, मानसून के इनडोर पौधों और कभी-कभी हार्डी पौधों की वृद्धि को भी प्रभावित कर सकती है।

आइए हम समझें कि हम मानसून के मौसम का आनंद कैसे उठा सकते हैं और यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारे पौधे भी इसका आनंद लें!

मानसून में पौधों के सड़ने के कारण

जल भराव

अत्यधिक वर्षा से जलभराव होता है, जिसका अर्थ है कि मिट्टी पानी में डूब जाती है और पौधों की जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। ऑक्सीजन की कमी से जड़ें पोषक तत्वों को अवशोषित करने में असमर्थ हो जाती हैं और धीरे-धीरे मरने या सड़ने लगती हैं। इस समस्या को हल करने के लिए, सुनिश्चित करें कि आपके मानसून के पौधों के लिए गमलों में उचित जल निकासी छेद बने हों। आप पौधों को ऊँचे स्तर पर रखने का भी प्रयास कर सकते हैं ताकि अतिरिक्त पानी बह जाए। हालाँकि, चूँकि हमारा देश एक उष्णकटिबंधीय देश है, इसलिए भारत में मानसून के पौधे मौसम की स्थिति में बदलाव के लिए काफी अनुकूल हैं।

फफूंद जनित रोग

मानसून का मौसम अपने साथ उच्च आर्द्रता और हवा में नमी लेकर आता है। ये परिस्थितियाँ मानसून के पौधों में फंगल रोगों के पनपने के लिए एक आदर्श वातावरण बनाती हैं। साथ ही, भारत में मानसून में पौधों को बारिश के असंगत स्तरों का सामना करना पड़ता है, और उतार-चढ़ाव वाली स्थितियाँ पौधों की बीमारियों को बढ़ा सकती हैं। इस समय के दौरान पाउडरी फफूंद, पत्ती के धब्बे, जैसे पौधों की बीमारियाँ आम हैं। इन फंगल संक्रमणों से लड़ने के लिए, फफूंदनाशकों का उपयोग करना या प्रभावित क्षेत्रों पर नीम के तेल का छिड़काव करना मददगार होगा। मानसून के महीनों के दौरान नियमित रूप से छंटाई करते रहना भी उचित है। इसके अलावा, फंगल संक्रमण के लिए मानसून के इनडोर पौधों की भी जाँच करते रहें।

जड़ सड़ना

अत्यधिक नमी के संपर्क में लंबे समय तक रहने से जड़ें सड़ने लगती हैं। यह ऐसी स्थिति है जिसमें फंगल रोग के कारण जड़ें सड़ने लगती हैं। इसे रोकने के लिए, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी बनाए रखना और अधिक पानी से गमलों को बचना बहुत ज़रूरी है। भारत में मानसून में उगने वाले सबसे अच्छे पौधे भी जड़ सड़न के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। इनसे सावधान रहें।

मिट्टी का कटाव

भारी बारिश से निश्चित रूप से ऊपरी मिट्टी का क्षरण होगा, जो पौधे की वृद्धि और पोषक तत्वों के सेवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आप मिट्टी की संरचना को संरक्षित करने के लिए मल्च का उपयोग करके इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।

अंत में, बरसात का मौसम अपने साथ गार्डन में लगे मानसून के पौधों के लिए कई चुनौतियाँ लेकर आता है, लेकिन निश्चिंत रहें कि उचित देखभाल और उपायों से इनमें से कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। अगर आप मानसून में पौधों की देखभाल करने के तरीके के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो हमारे Youtube channel Terrace & Gardening पर जाएँ और ऐसे और भी जानकारीपूर्ण विडियो देखें। यह ज़रूरी है कि आप अपने फूलों को कीटों और बीमारियों, से बचाएँ, ताकि वे मानसून के मौसम में जीवित रह सकें और ग्रोथ कर सकें।

पौधों को सड़ने से बचाने के उपाय

पौधों को सड़ने से बचाने के उपाय

अच्छी जल निकासी: सुनिश्चित करें कि गमलों और बेड में जल निकासी के लिए छेद हों, ताकि अतिरिक्त पानी निकल सके।

नियमित निरीक्षण: पौधों की जड़ों और पत्तियों की नियमित रूप से जांच करें और किसी भी फफूंद या संक्रमण के लक्षण दिखने पर तुरंत इलाज करें।

कम पानी देना: मानसून में पौधों को जरूरत से ज्यादा पानी न दें। नमी की मात्रा को नियंत्रित रखें।

नीम का तेल या फफूंदनाशक का प्रयोग: प्राकृतिक नीम के तेल या उपयुक्त फफूंदनाशक का छिड़काव करें ताकि फफूंद और बैक्टीरिया का संक्रमण न फैले।

मिट्टी का सही चुनाव: ऐसे मिट्टी का प्रयोग करें जो नमी को नियंत्रित कर सके, जैसे कि रेत और मिट्टी का मिश्रण।

सूर्य का प्रकाश: पौधों को पर्याप्त सूर्य का प्रकाश दें ताकि मिट्टी सूखी रह सके और नमी की मात्रा नियंत्रित रहे।

गमलों का स्थान बदलना: अगर संभव हो तो गमलों को ऐसी जगह रखें जहाँ अधिक बारिश न हो और सीधे पानी का संपर्क न हो।

इन उपायों को अपनाकर आप अपने पौधों को मानसून में सड़ने से बचा सकते हैं और उन्हें स्वस्थ रख सकते हैं।

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