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Om Thakur
बेल वाली सब्जियों में होने वाले रोग एवं बचाव के तरीके !
होम गार्डन में बेल या लताओं वाली सब्जियों को गमले में मुख्यतः गर्मियों के समय उगाया जाता है, जैसें- तोरई, लौकी, खीरा, ककड़ी, छप्पन कद्दू, टिंडा इत्यादि। इन बेल वाली सब्जियों में कई बीमारियों के लगने का डर बना रहता है, जिसकी वजह से आपके गार्डन में लगे हुए पौधों को भारी नुकसान पहुंचता है।
ऐसे में कद्दूवर्गीय बेल वाली सब्जियों के पौधों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए एवं सही समय पर आर्गेनिक कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए। तो आईये जानते हैं इन बेल वाली सब्जियों में लगने वाले रोग और उनसे बचाव के उपाय।
स्कैब (Scab)
बेल वाली सब्जियों व पौधों को प्रभावित करने वाले रोगों में स्कैब एक सबसे प्रमुख बीमारी है, जो अधिक ठंडे या नम वातावरण में पौधों की वृद्धि व उत्पादन को प्रभावित करती है। इसे गमोसिस रोग भी कहा जाता है, जिसे फलों एवं पत्तियों पर काले धब्बे आने से पहचाना जा सकता है।
स्कैब रोग से बचाव !
इस रोग से प्रभावित फलों को काटकर तुरंत नष्ट कर दें तथा अपने बगीचे में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose)
यह एक कवक रोग है जो सब्जियों, फलों और पेड़ों सहित कई अन्य पौधों के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है जो आमतौर पर पत्तियों में पहले छोटे, अनियमित पीले या भूरे रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देता है तथा यह बरसात के मौसम में बहुत तेजी से फैल सकता है।
एन्थ्रेक्नोज से बचाव !
पत्तियों, तनों, फूलों और फलों पर काले, धँसे हुए घाव से एन्थ्रेक्नोज रोग को पहचाना जा सकता है। एन्थ्रेक्नोज रोग से प्रभावित तना, पत्तियों व फलों को तुरंत हटायें तथा पत्तियों को गीला न होने दें। इसके अतिरिक्त बरसात या अधिक ठण्ड के समय पौधों को उचित स्थान पर ले जाना सुनिश्चित करें।
एंगुलर लीफ (Angular Leaf)
यह एक बैक्टीरियल रोग है, जो गीलेपन के कारण फैलता है। इस रोग से संक्रमित पौधे की पत्तियों पर पानी से लथपथ धब्बे आ जाते हैं तथा पत्तियों पर छोटे-छोटे छेद दिखाई देते हैं। जब एंगुलर लीफ रोग बेल वाली सब्जियों के फलों को प्रभावित करता है तो फलों में गोल धब्बे दिखाई देते हैं साथ ही एक गाढ़ा रिसने वाला पदार्थ भी निकलता है जिसके कारण फल खाने योग्य नहीं रहता।
एंगुलर लीफ से बचाव !
अपने गार्डन में लगे हुए बेल वाली सब्जियों में एंगुलर लीफ रोग के लक्षण दिखाई देने पर रोग प्रभावित पौधे को स्वस्थ पौधों से तुरंत अलग करें और गार्डन में साफ-सफाई होना सुनिश्चित करें ताकि अन्य पौधे संक्रमित न हो तथा पत्तियों को सूखा रखने के लिए पौधों को उचित दूरी पर रखें।
बैक्टीरियल विल्ट (Bacterial Wilt)
बैक्टीरियल विल्ट रोग से प्रभावित बेल वाली सब्जियों जैसे लौकी, तोरई इत्यादि में सबसे पहले पत्तियां सूखना शुरू करती हैं और धीरे- धीरे पूरी बेल संक्रमित होकर सूखने लगती है, अंततः पूरा पौधा मर जाता है। पौधों में बैक्टीरियल विल्ट रोग ककड़ी भृंगों द्वारा फैलता है।
बैक्टीरियल विल्ट से बचाव !
यह रोग ककड़ी बीटल कीट के कारण पौधों को संक्रमित करता है, इसीलिए बेल वाली सब्जियों को कीटों से बचाएं।
फुसैरियम विल्ट (Fusarium Wilt)
फुसैरियम विल्ट (फ्यूजेरियम) एक प्रकार का कवक रोग है जो मुख्य रूप से खरबूजे और तरबूज के पौधों को प्रभावित करता है। इस रोग के लक्षण- लताओं में पानी से लथपथ धारियाँ विकसित हो सकती हैं, पौधे का विकास रुक जाता है, पत्तियां मुरझा जाती हैं एवं बेल या लताओं की जड़ें सड़ जाती हैं और पौधा मर जाता हैं।
फुसैरियम विल्ट से बचाव !
बेल वाली सब्जियों को फुसैरियम विल्ट रोग से बचाने के लिए पौधों को 6 से 7 पीएच मान वाली मिट्टी में लगाना चाहिए। चूँकि नाइट्रोजन पोषक तत्वों की अधिकता के कारण पौधे फुसैरियम विल्ट रोग से प्रभावित हो सकते हैं, अतः नाइट्रोजन उर्वरक की निश्चित मात्रा ही पौधों को देनी चाहिए।
पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)
यह एक कवक रोग है जो उच्च आर्द्रता और गर्म मौसम में पनपता है यह अन्य बेल वाली सब्जियों के साथ मुख्यतः लौकी को प्रभावित करता है, जिसमें पत्तियों व युवा तनों पर सफेद-भूरे रंग का पाउडर जैसा पदार्थ बनता है, परिणामस्वरूप प्रभावी पौधे सूखकर मुरझाने लगते हैं अंततः बेल वाली सब्जियों के पौधे मर जाते हैं।
पाउडरी मिल्ड्यू से बचाव !
अगर आपकी बेल वाली सब्जियों या पौधों में खस्ता फफूंदी रोग पाया गया है तो आप इसे पोटेशियम बाइकार्बोनेट का स्प्रे या पोटाश का छिड़काव करके दूर किया जा सकता है।
डाउनी मिल्ड्यू (Downy Mildew)
यह रोग पौधे में पत्तियों के ऊपरी सिरे पर अनियमित आकार के पीले-भूरे रंग के धब्बे के रूप में दिखता है। जब यह रोग बरसात के समय नम मौसम में पनपता है, तब इन धब्बों के नीचे एक बैंगनी रंग का फफूंदी बन सकता है। कोमल फफूंदी से प्रभावित पौधे की पत्तियों में धब्बे बड़े होने पर पत्तियाँ मर जाती हैं। यह रोग मुख्यतः खीरे और खरबूजे को प्रभावित करता है।
डाउनी मिल्ड्यू से बचाव !
फफूंदी रोग से प्रभावित पौधों के आसपास नमी को कम करके आप प्रभावी तरीके से पौधों में फंगल रोग का प्रबंधन कर सकते हैं। इसके लिए आप पौधों को ड्रिप सिस्टम से सिंचाई और पौधे की छंटाई के माध्यम से वायु परिसंचरण में सुधार करके भी नमीं को नियंत्रित कर सकते हैं।
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मोजेक वायरस (Mosaic Virus)
मोज़ेक वायरस बेल या लताओं वाली सब्जियों व पौधे में पत्तियों के धब्बेदार, बौने और विकृत होने का कारण बनता है। प्रत्येक बेल वाली सब्जी का अपना अलग मोजेक वायरस होता है जैसे-तरबूज मोज़ेक-2, स्क्वैश मोज़ेक वायरस, ककड़ी मोजेक वायरस। ये वायरस भी मुख्य रूप से अत्याधिक नमी वाले स्थानों पर ही पौधों को प्रभावित करते हैं।
मोजेक वायरस से बचाव !
अगर आप अपने गार्डन में प्रतिवर्ष बेल वाली सब्जियाँ लगाते हैं और उनमें मोजेक वायरस रोग का खतरा है, तो पौधे लगाते समय रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें तथा रोग फ़ैलाने वाले कीटों का नियंत्रण और गार्डन में अत्याधिक नमीं से बचाव करने के तरीके अपनाना सबसे अच्छा होगा।
गमी स्टेम ब्लाइट(Gummy Stem Blight)
यह रोग डिडिमेला ब्रायोनिया नामक कवक के कारण होता है, इस चिपचिपे स्टेम ब्लाइट को ब्लैक रोट भी कहते हैं। यह रोग मुख्य रूप से ककड़ी, तरबूज, खरबूजे, स्क्वैश और कद्दू जैसी लगभग सभी बेल वाली सब्जियों में होता है एवं पौधों के तना, बेल, पत्तियों व फलों को प्रभावित करता है जिससे उपज में कमी, काली सड़न के साथ क्षतिग्रस्त फलों की प्राप्ति इत्यादि समस्या उत्पन्न होती है।
गमी स्टेम ब्लाइट से बचाव !
लगातार बारिश, ऊपरी सिंचाई या खराब जल निकासी के साथ उच्च आर्द्रता और नमी की स्थितियां इस रोग का कारण बनती हैं। ठंड, बरसात के मौसम में चिपचिपा स्टेम ब्लाइट को नियंत्रित करने के लिए नियमित कवकनाशी स्प्रे आवश्यक हो सकते हैं।